सोमवार, मार्च 22, 2010

संकट से निबटने में लाचार हमारा शहर

जोधपुर, 21 मार्च। राज्य के दूसरे बड़े शहर और जोधपुर जिले में बड़े हादसे हो जाएं तो प्रशासन के हाथ-पैर फूल जाते हैं। चाहे मॉल हादसा हो, बड़ी सड़क दुर्घटना अथवा भीषण अग्निहादसा, प्रशासन का आपदा प्रबंधन विकलांग ही नजर आता है। नाले में दो बच्चों के डूबने के मामले में भी प्रशासन की पोल एक बार फिर खुल गई है।
हालत यह है कि सभी हादसों के बाद कुछ दिनों तक बैठकों का दौर चलता है, आपदा प्रबंधन पर जोर-शोर से चर्चाएं होती हैं, मगर नतीजा कुछ भी नहीं निकलता। होता यह है कि हर बार हालात बिगड़ते जाते हैं। अब तक प्रशासन के लिए चुनौती बने हादसों या आपदाओं के प्रबंधन में सामने आई खामियों को दूर करने के ही प्रयास नहीं हुए, तो नए खतरों से निपटने की बात सोचना भी बेमानी लगता है। देश के प्रमुख शहरों पर आतंकी हमलों के बाद खुफिया एजेंसियां जोधपुर को हाईअलर्ट रहने की हिदायत दे चुकी हैं, लेकिन हालत यह है कि प्रशासन अभी आम आपदा में भी मदद के लिए सेना पर निर्भर है। पिछले एक दशक के भीतर ऐसी दुर्घटनाएं गिनाने के कई उदाहरण सामने हैं। जसवंतसागर बांध दो बार टूटा, बाढ़ के हालात पैदा हो गए। बांध की मजबूती के लिए लंबे समय तक प्रशासनिक प्रयासों की खानापूर्ति भी हुई, मगर हालात अब भी वैसे ही बने हुए हैं। मेहरानगढ़ हादसे में 216 लोगों की जान चली गई। अब तक यह समझ नहीं पाए कि यह हादसा कैसे हुआ और इससे निपटने के लिए क्या प्रबंध किए जा सकते हैं। दो साल पहले अप्रैल में देचू के पास ओवरलोडिंग व हाई-वे पर दौड़ते भारी वाहनों के कारण महज एक दुर्घटना के कारण 24 लोगों की जान चली गई। तत्कालीन डीजीपी और गृह सचिव ने नाराजगी जाहिर कर दी, हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए सड़क हादसों में होने वाली मौतों को रोकने के निर्देश दिए, परंतु इस प्रयासों का नतीजा सिफर ही रहा। ऐसे ही हालात भीषण अग्निहादसों में सामने आए। आठ साल पहले मंडोर के कोल्ड स्टोरेज व प्लास्टिक के गोदाम में लगी आग बुझाने में एक सप्ताह लग गया। बासनी में हैंडीक्राफ्ट, केमिकल तथा कपड़ा फैक्ट्रियों में हर साल कई बार आग लगती है, उन्हें बुझाने में भी सेना की मदद लेनी पड़ती है। सेना के भरोसे तो बावडिय़ों में डूबने वालों को निकालने में भी रहना पड़ता है। दिसंबर 06 में नागौरीगेट के पास बावड़ी में डूबी महिला को निकालने में प्रशासन को तीन दिन लग गए। इसी प्रकार सूरसागर स्थित झालरे में इससे पहले डूबे बालक को भी चार दिन बाद निकाल पाए। प्रशासन तो इन बावडिय़ों का पानी भी नहीं तोड़ पाया। रविवार को नाले दो बच्चों के डूबने के मामले में भी यही कहानी दोहराई गई। एक बच्चा तो इसलिए जिंदा बच गया, क्योंकि उसे तत्काल ही लोगों ने डूबने से बचा लिया। दूसरे बच्चे की तलाश में सरकारी मशीनरी बेबस हो गई।

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